एवं कदपरियम्मो सब्भंतरवाहिरम्मि सल्लिहणो ।
संसारमोक्खबुद्धी सव्वुवरिल्लं तवं कुणदि॥275॥
इस क्रम से अन्तर-सल्लेखन सहित बाह्य-सल्लेखन हो ।
संसार त्याग का दृढ़ निश्चय कर सर्वाेत्कृष्ट करे तप को॥275॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार अभ्यंतर सल्लेखना और बाह्य सल्लेखना में बाँधा है परिकर जिनने और संसार से छूटने की है बुद्धि जिनकी, ऐसे साधु वे उत्कृष्ट तप करते हैं ।

  सदासुखदासजी