+ आगे दिशा नामक अधिकार पाँच गाथाओं द्वारा कहते हैं - -
वोढुं गलादि देहं पव्वोढव्वमिणसुचिभारोत्ति ।
तो दुक्खभारभीदो कदपरियम्मो गणमुवेदि॥276॥
भाररूप इस अशुचि देह को त्याज्य जानकर ग्लानि करे ।
डरे देह से मरण-समाधि हेतु निकट जा शिष्यों के॥276॥
अन्वयार्थ : देह धारण करने में नहीं है हर्ष जिनके, यह शरीर तो अशुचि का भारमय/बोझारूप है, त्यागने योग्य है; इसलिए दु:ख के भार से भयभीत हुए और किया है समाधिमरण का परिकर जिनने ऐसे जो साधु वे संघ/मुनीश्वरों का समुदाय, उन्हें समाधिमरण करने के लिये प्राप्त होते हैं । क्षपक को समाधिमरण कराने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

  सदासुखदासजी