
सल्लेहणं करेंतो जदि आयरिओ हवेज्ज तो तेण ।
ताए वि अवत्थाए चिंतेदव्वं गणस्स हियं॥277॥
सल्लेखना धारने वाले यदि होवंे आचार्य प्रवर ।
संघ व्यवस्था के बारे में भी चिन्तन करते मुनिवर॥277॥
अन्वयार्थ : और यदि आचार्य सल्लेखना करने के लिये उद्यमी हुए हैं तो उन्हंे सल्लेखना के अवसर में संघ के हित का चिंतवन करना योग्य है ।
सदासुखदासजी