गच्छाणुपालणत्थं आहोइय अत्तगुणसमं भिक्खू ।
तो तम्मि गणविसग्गं अप्पकहाए कुणदि धीरो॥279॥
गण अनुपालन हेतु गुणों में निज-सम भिक्षु को खोजे ।
फिर उससे कुछ वार्ता कर, वे धीर संघ का त्याग करें॥279॥

  सदासुखदासजी