+ आगे क्षमण नामक तेरहवाँ अधिकार तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं- -
आमंतेऊण गणिं गच्छम्मि य तं गणिं ठवेदूण ।
तिविहेण खमावेदि हु स बालउड्ढाउलं गच्छं॥281॥
गण समक्ष अनुवर्ती1 को स्थापित करते हैं आचार्य ।
त्रिविध क्षमा-याचन करते हैं बाल-वृद्ध गण से आचार्य॥281॥
अन्वयार्थ : संघ में स्थापन करके, बाल, वृद्ध, मुनियों सहित संघ से मन-वचन-काय से क्षमा ग्रहण करायें ।

  सदासुखदासजी