
वंदिय णिसुडिय पडिदो तादारं सव्ववच्छलं तादिं ।
धम्मायरियं णिययं खामेदि गणो वि तिविहेण॥283॥
स्वयं धर्म धारें एवं धारण करवाते मुनि-गण से ।
मुनि संघ भी क्षमा माँगता वन्दन कर त्राता गुरु1 से॥283॥
अन्वयार्थ : आचार्य क्षमा ग्रहण करायें, तब सम्पूर्ण संघ भी अंग संकोच कर चरणारविंदों में नमकर वंदना करे और संसार से रक्षा करने वाले तथा सम्पूर्ण संघ में है वात्सल्य जिनका, ऐसे धर्म के आचार्य से मन-वचन-काय द्वारा क्षमा की प्रार्थना करें/हम सभी आप से क्षमा चाहते हैं ।
सदासुखदासजी