+ आगे अनुशिष्टि/शिक्षा नामक चौदहवाँ अधिकार 105 गाथाओं द्वारा कहते हैं- -
संवेगजिणियहासो सुत्तत्थविसारदो सुदरहस्सो ।
आदट्ठचिंतओ वि हु चिंतेदि गणं जिणाणाए॥284॥
भव-भय से हर्षित हैं सूत्र विशारद श्रुत रहस्य ज्ञाता ।
निज हित तत्पर किन्तु जिनाज्ञा से करते हैं गण चिन्ता॥284॥
अन्वयार्थ : धर्मानुराग से उत्पन्न हुआ है हर्ष जिनके और जिनेन्द्र द्वारा प्ररूपित किये गये सूत्रार्थ में प्रवीण हैं, श्रवण किया है प्रायश्चित्त ग्रन्थ जिनने, आत्मकल्याण का चिंतवन करने वाले ऐसे आचार्य, वे जिनेन्द्र की आज्ञा के अनुसार संघ के हितार्थ चिंतवन करते हैं कि सम्पूर्ण संघ के ये मुनि रत्नत्रय के धारक मोक्षमार्ग में निर्विघ्न प्रवत~ - ऐसा चिंतवन करके शिक्षा देते हैं ।

  सदासुखदासजी