णाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि य तीसु समयसारेसु ।
ण चाएदि जो ठवेदुं गणमप्पाणं गणधरो सो॥291॥
आगम के जो सारभूत हैं दर्शन-ज्ञान-चरण पथ में ।
धरने में असमर्थ स्व-गण को अतः नहीं वह गणधर है॥291॥
अन्वयार्थ : समय/सिद्धांत का सारभूत अथवा समय/आत्मा का सारभूत स्वरूप जो तीन

  सदासुखदासजी