पिंडं उवहिं सेज्जं उग्गमउप्पादणेसणादीहिं ।
चारित्तरक्खणटठं सोधिंत्तो होदि सुचरित्तो॥293॥
बिन शोधे जो सेवन करे वसति उपकरण तथा आहार ।
मूलस्थान दोष उसे वह साधु जानिए भ्रष्ट श्रमण॥293॥

  सदासुखदासजी