
पिंडं उवहिं सेज्जं अविसोहिय जो हु भंुजमाणो हु ।
मूलठ्ठाणं यत्तो मूलोत्ति य समणपेल्लो सो॥294॥
उद्गमादि1 दोषों का शोधन करे वसति उपकरण अहार ।
चारित्र की रक्षा हेतु जो यति उसे सम्यक् आचार2॥294॥
अन्वयार्थ : आहार और उपकरण, शय्या/वसतिका - इनको उद्गम, उत्पादन, एषणादि दोषरहित चारित्र की रक्षा के लिए शुद्ध ग्रहण करनेवाले साधु सुन्दर निर्दोष चारित्र के धारक सुचरित्रवान
सदासुखदासजी