पिण्डं उवधिं सेज्जामविसोधिय जो खु भुंजमाणो हु ।
मूलठ्ठाणं पत्तो बालोत्तिय णो समणबालो॥297॥
जो सदोष आहार उपकरण और वसति करता स्वीकार ।
उसे न इन्द्रिय-प्राणी संयम, मात्र नग्न, नहिं यति गणधर॥297॥
अन्वयार्थ : भोजन, उपकरण और शय्या की शुद्धता बिना भोजन करनेवाला साधु मूल स्थान नामक दोष को प्राप्त होता है, वह अज्ञानी साधु श्रमण बाल है ।

  सदासुखदासजी