णिवदिविहूणं खेत्तं णिवदी वा जत्थ दुट्ठओ होज्ज ।
पव्वज्जा च ण लब्भदि संजमचादो व तं वज्जो॥300॥
नृपति हीन या नृपति दुष्ट हो तो वह क्षेत्र त्वरित त्यागो ।
जहाँ न कोई दीक्षा ले, हो संयम छेद, उसे त्यागो॥300॥
अन्वयार्थ : भो गणधर! ऐसे क्षेत्र में संघ का विहार मत कराना, जिस क्षेत्र में नृपति/राजा न हो । उस क्षेत्र को त्याग देना और जहाँ का राजा दुष्ट हो, वह क्षेत्र संघ के विहार योग्य नहीं है । जिस क्षेत्र में दीक्षा न ले/ले न सकें, जहाँ संयम का घात हो जाये, संयम पालन नहीं कर सकें - ऐसे क्षेत्र में विहार नहीं करना ।

  सदासुखदासजी