
समिदा पंचसु समिदीसु सव्वदा जिणवयणमणुगदमदीया ।
तिहिं गारवेहिं रहिदा होइ तिगुत्ता य दंडेसु॥302॥
पंच समिति पालन में तत्पर, बुद्धि जिनागम के अनुसार ।
गारव त्रय से रहित और त्रय दण्ड गुप्ति हो मन-वच-काय॥302॥
अन्वयार्थ : पंच समितियों में सदा काल सावधान रहना तथा जिनेन्द्र के वचनों के अनुकूल बुद्धि करना । तीन प्रकार के गारव - रससहित भोजन करने का गर्व, साता बनी रहने का गर्व और ऋद्धि का गर्व - इन तीन प्रकार के गारव का त्याग करना तथा अशुभ मन-वचनक ाय की प्रवृत्तिरूप तीन दंड के त्यागरूप तीन गुप्ति को प्राप्त करना ।
सदासुखदासजी