धण्णा हु ते मणुस्सा जे ते विसयाउलम्मि लोयम्मि ।
विहरंति विगदसंगा णिराउला णाणचरणजुदा॥304॥
विषयों से भरपूर जगत में अनासक्त जो वे नर धन्य ।
ज्ञान-चरणयुत विचरण करते, होय निराकुल रहे असंग॥304॥
अन्वयार्थ : पाँच इन्द्रियों के विषयों की चाहना से आकुलता को प्राप्त हुआ यह लोक, उसमें जो सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र से संयुक्त हुआ और विषयों की चाहना रहित निराकुल, संग परिग्रह से रहित हुआ प्रवर्तता है, वह मनुष्य जगत में धन्य है ।

  सदासुखदासजी