
सत्तीए भत्तीए विज्जावच्चुज्जदा सदा होइ ।
आणाए णिज्जरेत्ति य सबालउड्ढाउले गच्छे॥309॥
शक्ति-भक्ति अनुसार रहो उद्यत नित वैयावृत्ति में ।
बाल-वृद्ध मुनि की, यह जिन-आज्ञा है इससे कर्म खिरें॥309॥
अन्वयार्थ : भो मुनियो! बाल मुनि, वृद्ध मुनि, रोगी मुनि, नीरोगी मुनि इत्यादि से व्याप्य गच्छ/संघ में संपूर्ण सामर्थ्य और भक्तिपूर्वक सदा काल वैयावृत्त्य में उद्यमी रहना, यह जिनेन्द्र की आज्ञा है । इससे कर्म की निर्जरा होती है । अत: अपनी शक्ति अनुसार धर्मानुराग करके सर्व संघ के साधुजनों की वैयावृत्त्य/टहल/सेवा में सावधान रहना ।
सदासुखदासजी