अद्धाण तेण सावयरायणदीरोधगासिवे ऊमे ।
वेज्जावच्चं उत्तं सगहणारक्खणोवेदं॥311॥
दुष्ट नृपति, पशु चोरादिक से पीड़ित की रक्षा करना ।
पैर दबाना, धीरज देना अरु सुभिक्ष थल में लाना॥311॥
अन्वयार्थ : शय्या का अवकाश प्रभात काल तथा अस्त होने के काल, दोनों अवसर में नेत्रों से देखकर और बाद में मयूर पिच्छिका से प्रतिलेखन करके, अशक्त मुनियों को/रोगियों को तथा वृद्ध मुनियों के शयन/सोने/लेटने के (स्थान का) शोधन करना तथा बैठने के स्थान, कमंडल, पीछी, शास्त्र को दोनों समयों में शोध देना । आहार से, शुद्ध औषधि से, शुद्ध ग्रंथों की वाचना, स्वाध्याय करके, मल-मूत्र कफादि को दूर करके, एक करवट से दूसरे करवट से शयन कराने के लिए उठाना, शयन कराना तथा मार्ग में चलाना - इत्यादि रूप से वैयावृत्त्य करना ।

  सदासुखदासजी