+ जो समर्थ होकर भी वैयावृत्त्य नहीं करते, उनके दोष दो गाथाओं द्वारा दिखाते हैं - -
अणिगूहिदबलविरिओ वेज्जावच्चं जिणोवदेसेण ।
जदि ण करेदि समत्थो संतो सो होदि णिद्धम्मो॥312॥
जो समर्थ हैं पर न करें वैयावृत्ति जिनोक्त क्रम से ।
निज बल-वीर्य छिपाए बिना, जो मुनि वे धर्म रहित होते॥312॥

  सदासुखदासजी