पं-सदासुखदासजी
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आगे वैयावृत्त्य करने में जो गुण होते हैं, उन्हें दो गाथाओं द्वारा कहते हैं -
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गुणपरिणामो सड्ढा वच्छाल्लं भत्तिपत्तलंभो य ।
संधाणं तवपूया अव्विच्छत्ती समाधी य॥314॥
श्रद्धा भक्ति वात्सल्य हो पात्रलाभ अरु गुण परिणाम ।
तप, पूजा, सन्धान1 समाधि तीर्थ-अव्युच्छित्ति का लाभ॥314॥
सदासुखदासजी