+ अब वैयावृत्त्य से श्रद्धान नामक गुण होता है, यह कहते हैं - -
जह जह गुणपरिणामो तह तह आरुहइ धम्मगुणसेढिं ।
वढ्ढदि जिणवरमग्गे णवणवसंवेगसढ्ढावि॥320॥
चारित की सीढ़ी पर चढ़ता गुण परिणामों के अनुसार ।
जिन-शासन में श्रद्धा बढ़ती भय-निमित्त होता संसार॥320॥
अन्वयार्थ : जैसे-जैसे गुणों में परिणाम होते हैं, वैसे-वैसे धर्मरूप गुण की श्रेणी पर चढते हैं और जिनेन्द्र के मार्ग में नवीन-नवीन धर्मानुराग तथा संसार, देह, भोगों से विरक्तिरूप श्रद्धान वृद्धिंगत होता है ।

  सदासुखदासजी