
सढ्ढाए वढ्ढियाए वच्छलं भावदो उवक्कमदि ।
तो तिव्वधम्मराओ सव्वजगसुहावहो होइ॥321॥
श्रद्धा बढ़ने से मुनिमन में बढ़ता वत्सलमय परिणाम ।
धर्म राग हो तीव्र, सर्व सुख पाता है वह शीघ्र ललाम॥321॥
अन्वयार्थ : श्रद्धान के बढने से भावों में वात्सल्य/धर्मानुरागपने का प्रारंभ होता है और जो धर्म में अनुराग है, वही जगत को सुख की प्राप्ति करानेवाला है । इस धर्मानुराग से इन्द्रपना, अहमिंद्रपना प्राप्त होता है और अनंतसुखरूप निर्वाण भी प्राप्त होता है ।
सदासुखदासजी