
जाि उसिर्ग रिीषह अरु दुेर्भक्ष सहन कर सकति हैं ।
मरण-ेनेमत्त जरा भी आए उसि खुशी सि वरति हैं॥2079॥
जो उपसर्ग परीषह अरु दुर्भिक्ष सहन कर सकते हैं ।
मरण-निमित्त जरा भी आए उसे खुशी से वरते हैं॥2079॥
अन्वयार्थ : सर्व प्रकार से दुस्तर/पार नहीं पा सकते - ऐसा दृढ घोर उपसर्ग आने पर, दुर्भिक्ष आने पर तथा और भी मरण के कारण आ जाने पर भी जो ध्यान में लीन हैं, ऐसे योगी प्रायोपगमन संन्यासपूर्वक मरण करते हैं ।
सदासुखदासजी