+ ही है । इसमें पृ. 774 गा. 2972 से 2077 तक का एक साथ अर्थ दिया है - -
पाडलिपुत्ते धूदाहेदंु मामयकदम्मि उवसग्गे ।
साधेदि उसभसेणो अट्ठं विक्खाणसं किच्चा॥2081॥
सुता स्नेह वश मामा ने उपसर्ग किया पाटलिपुर में ।
ऋषभसेन मुनि ने समाधि धारण कर आत्मार्थ साधा॥2081॥
अन्वयार्थ : पटना नगर में अपनी पुत्री के लिये मामा द्वारा किया गया उपसर्ग सहन करके वृषभषेन नाम के मुनिराज ने अपने आत्मार्थ/आराधना की पूर्णता की ।

  सदासुखदासजी