अहिमारएण णिवदिम्मि मारिदे गहिदसमणलिंगेण ।
उद्दाहपसमणत्थं सत्थग्गहणं अकासि गणी॥2082॥
अहिमारक ने श्रमण लिंग धरकर भूपति का घात किया ।
उपसगाब के अप्रतिकारी मुनि ने मरण-समाधि लिया॥2082॥
अन्वयार्थ : अहिमारक नाम के चोर ने मुनि का लिंग धारण करके राजा को मारने पर भी संघ के स्वामी - गणी जो आचार्य ने समस्त संघ का उपद्रव दूर करने के लिये या संघ का तथा धर्म का अपवाद दूर करने के लिये स्वयं शस्त्र ग्रहण किया था ।

  सदासुखदासजी