+ बालपंडित मरण देशव्रती श्रावक के होता है, अब उसका वर्णन दश गाथाओं के माध्यम से करते हैं - -
देसेक्क देसविरदो सम्मादिट्ठी मरिज्ज जो जीवो ।
तं होदि बालपण्डिद मरणं जिणसासणे दिठ्ठं॥2085॥
एक देश व्रतधारी या सम्यग्दृष्टि का होय मरण ।
जिनशासन में उसको ही कहते हैं पंडित-बाल मरण॥2085॥
अन्वयार्थ : जो देशविरत सम्यग्दृष्टि जीव का मरण होता है, उसे जिनेन्द्र के शासन में बाल पंडित मरण कहा है । यहाँ विशेष यह है कि जो सम्यग्दर्शन सहित पंच पापों का एक देश त्याग करता है, वह देशव्रती नाम पाता है । उस देशव्रत के ग्यारह स्थान हैं, उनका संक्षेप में कथन करते हैं - प्रथम तो सम्यग्दृष्टि होकर, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीव के देशव्रत नहीं होते हैं । वह सम्यग्दर्शन तीन प्रकार का है - औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक । अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को प्रथम औपशमिक सम्यक्त्व ही होता है । मिथ्यात्व का नाश होकर औपशमिक सम्यक्त्व होता है, उसको प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं ।

  सदासुखदासजी