
जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडेहि जं च वेरमणं ।
देसावगासियं पि य गुणव्वयाइं भवे ताइं॥2088॥
दिशा विरति एवं अनर्थ दण्डों से भी पीछे हटना ।
देशावकाशिक भी मिलकर होते हैं ये तीनों गुणव्रत॥2088॥
अन्वयार्थ : मरणपर्यंत दशों दिशाओं में गमनादि की मर्यादा करना दिग्विरति नामक व्रत है, अनर्थदंडों का त्याग, वह अनर्थदंडविरति नामक व्रत है तथा काल की मर्यादा पूर्वक क्षेत्र में गमन करने की मर्यादा करना, वह देशावकाशिक व्रत है । ये तीन गुणव्रत हैं ।
सदासुखदासजी