
आलोचिदणिस्सल्लो सघरे चेवारुहिंतु संथारं ।
जदि मरदि देसविरदो तं वुत्तं बालपण्डिदयं॥2091॥
घर में ही निःशल्य होकर विधि पूर्वक आलोचना करें ।
संस्तर पर आरूढ़ मृत्यु हो इसको पंडित-बाल कहें॥2091॥
अन्वयार्थ : शल्यरहित होकर पंचपरमेष्ठी से आलोचना करके अपने गृह में ही शुद्ध संस्तर में रहकर जो देशव्रत के धारक गृहस्थ का मरण होता है, वह बालपंडितमरण है - ऐसा भगवान के परमागम में कहा है ।
सदासुखदासजी