
वेमाणिएसु कप्पोवगेसु णियमेण तस्स उववादो ।
णियमा सिज्झदि उक्कस्सएण वा सत्तमम्मि भवे ॥2093॥
सौधर्मादिक कल्प सुरों में निश्चित वह श्रावक जन्में ।
और अधिक से अधिक सात भव में वह निश्चित मुक्ति लहे॥2093॥
अन्वयार्थ : उस बालपंडितमरण करने वाले का उत्पाद स्वर्गनिवासी वैमानिक देवों में नियम से होता है और वह समाधिमरण के प्रभाव से उत्कृष्ट से/अधिक से अधिक सप्तम भव में नियम से सिद्ध होता है ।
सदासुखदासजी