
साहू जधुत्तचारी वट्टअंतो अप्पमत्तकालम्मि ।
ज्झाण उवेदि धम्मं पविठ्ठुकामो खवगसेढिं॥2095॥
जिन आगम अनुसार वर्तते मुनिवर क्षपक श्रेणि चढ़ते ।
अप्रमत्त गुणथान काल में उत्तम धर्मध्यान धरते॥2095॥
अन्वयार्थ : आचारांग की आज्ञाप्रमाण आचरण का धारक और अप्रमत्त/सप्तम गुणस्थान में वर्तने वाला साधु क्षपकश्रेणी पर चढने का इच्छुक धर्मध्यान को प्राप्त होता है, क्योंकि सर्वोत्कृष्ट विशुद्धतासहित धर्मध्यान सप्तम गुणस्थान में श्रेणी चढने के सन्मुख हुए साधु को ही होता है, दूसरों को नहीं होता ।
सदासुखदासजी