+ अब ध्यान के बाह्य परिकर को कहते हैं - -
सुचिए समे विचित्ते देसे णिज्जंतुए अणुण्णाए ।
उज्जुअआयददेहो अचलं बंधेत्तु पलि अंकं॥2096॥
जन्तु रहित एकान्त पवित्र समान भूमि पर आज्ञा ले ।
खड्गासन पल्यंकासन में देह अचल करके बैठें॥2096॥

  सदासुखदासजी