पं-सदासुखदासजी
वीरासणमादीयं आसणसमपादमादियं ठाणं ।
सम्मं अधिट्ठिदो अध वसेज्जमुत्ताणसयणादि॥2097॥
वीरासन अथवा दोनों पग सम रखकर वे खड़े रहें ।
अथवा ऊपर को मुख करके या करवट लेकर लेटें॥2097॥
सदासुखदासजी