
पुव्वभणिदेण विधिणा ज्झायदि ज्झाणं विसुद्धलेस्साओ ।
पवयणसंभिण्णमदी मोहस्स खयं करेमाणो॥2098॥
पूर्वाेक्त विधि पूर्वक शुभ लेश्या युत होकर ध्यान धरें ।
प्रवचन से निर्मल मति होकर मोह नष्ट करना चाहें॥2098॥
अन्वयार्थ : जो स्थान पवित्र हो या सम हो तथा एकान्त हो या स्थान के स्वामी द्वारा प्रशंसा किया/क्षपक को ठहरने के लिए निवेदन किया हो, ऐसे शुद्ध स्थान में सरल, लम्बे, वक्रतारहित अपने देह को रखकर अचल पर्यंकासन लगाकर या वीरासनादि या समपादादि खडे आसन या उत्तान शयनादि आसनों को धारण करके पूर्व में कही विधि अनुसार धर्मध्यान को ध्यावे । कैसे होकर ध्यावे ? विशुद्ध है लेश्या जिसकी, जिन सिद्धान्त में लीन बुद्धि जिनकी और मोह का क्षय करता हुआ धर्मध्यान को ध्याता है ।
सदासुखदासजी