
संजोयणाकसाए खवेदि झाणेण तेण सो पढमं ।
मिच्छत्तं सम्मिस्सं कमेण सम्मत्तमवि य तदो॥2099॥
पहले संयोजित कषाय को ध्यान अनल में क्षय करते ।
फिर मिथ्यात्व मिश्र अरु सम्यक् तीन प्रकृति भी क्षय करते॥2099॥
अन्वयार्थ : सप्तम गुणस्थान में उस धर्मध्यान से पूर्व में विसंयोजना की है कषाय की जिसने, ऐसा पुरुष प्रथम तो धर्मध्यान द्वारा मिथ्यात्व का क्षय करता है । बाद में सम्यग्मिथ्यात्व का क्षय करके पश्चात् सम्यक् मोहनीय का क्रम से क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि होता है । उसके बाद समस्त चारित्रमोहनीय का क्षय करने को समर्थ होता है ।
सदासुखदासजी