
अध खवयसेढिमधिगम्म कुणइ साधू अपुव्वकरणं सो ।
होइ तमपुव्वकरणं कयाइ अप्पत्तपुव्वंति॥2100॥
क्षायिक समकित लेकर क्षपक श्रेणि में करें अपूर्वकरण ।
पहले नहीं हुए एेसे परिणाम अतः अपूर्वकरण॥2100॥
अन्वयार्थ : क्षायिक सम्यक्त्व होने के बाद क्षपक श्रेणी पर प्रवेश करता है, वह साधु अपूर्वकरण को प्राप्त करता है; क्योंकि पूर्व में ऐसे परिणाम नहीं हुए । ऐसे परिणामों को प्राप्त होता है, वह अपूर्वकरण होता है ।
सदासुखदासजी