
अध लोभसुहुमकिट्टिं वेदंतो सुहुमसंपरायत्तं ।
पावदि पावदि य तधा तण्णामं संजमं सुद्धं॥2105॥
लोभ सूक्ष्म कृष्टि का वेदन करता हुआ सूक्ष्म सांपराय ।
पाकर दसवाँ गुणस्थान वह संयम लहे सूक्ष्म सांपराय॥2105॥
अन्वयार्थ : सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त हुए लोभ का अनुभव करने वाले साधु सूक्ष्मसाम्पराय को प्राप्त होते हैं तथा इस गुणस्थान के नामधारक सूक्ष्मसाम्पराय नाम के शुद्ध संयम को प्राप्त होते हैं ।
सदासुखदासजी