
झाणेण य तेण अधक्खादेण य संजमेण घादेदि ।
सेसाणि घादिकम्माणि समयमवरंजणाणि मदो॥2107॥
शुक्ल ध्यान अरु यथाख्यात चारित्र प्राप्त वह श्रेष्ठ क्षपक ।
जो विभाव कारण घाति त्रय कर्म प्रकृति का करता क्षय॥2107॥
अन्वयार्थ : इस एकत्ववितर्क अवीचार नामक ध्यान से यथाख्यात संयम से जीव को अन्यथा भाव करने वाले तथा चेतन को जड समान करने वाले ज्ञानावरण-दर्शनावरण-अंतराय रूप जो घातिकर्म शेष थे, उनका एक साथ/एक समय में नाश कर देता है ।
सदासुखदासजी