
तो सो वेदयमाणो विहरइ सेसाणि ताव कम्माणि ।
जावसमत्ती वेदिज्जमाणयस्साउगस्स भवे॥2114॥
शेष अघाति कर्म वेदते जब तक नरभव शेष रहे ।
केवलज्ञान सहित वे भगवन देह सहित विचरण करते॥2114॥
अन्वयार्थ : जब तक अनुभूयमान/भुज्यमान आयुकर्म की समाप्ति होगी, तब तक शेष अघातिकर्म को भोगते हुए विहार करते हैं, प्रवर्तते हैं ।
सदासुखदासजी