जेसिं आउसमाइं णामगोदाइं वेदणीयं च ।
ते अकदसमुग्घादा जिणा उवणमंति सेलेसिं॥2117॥
जिनके नाम गोत्र वेदनी की स्थिति हो आयु समान ।
समुद्घात के बिना सयोगी वे पाते शैलेषी स्थान1॥2117॥
अन्वयार्थ : जिनके नाम, गोत्र, वेदनीय - इन तीन कर्म की स्थिति आयुकर्म की स्थिति के समान होती है, वे समुद्घात किये बिना ही शैलेश्यं/अयोगकेवली, चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त हो 18000 शील के भेदों की परिपूर्णता को प्राप्त होते हैं ।

  सदासुखदासजी