जेसिं हवंति विसमाणि णामगोदाउवेदणीयाणि ।
ते दु कदसमुग्घादा जिणा उवणमंति सेलेसिं॥2118॥
जिसकी आयु, नाम गोत्र अरु वेदनीय से अल्प रहे ।
समुद्घात करके ही वे जिनवर अयोगकेवलि होते॥2118॥
अन्वयार्थ : जिनके नाम, गोत्र, आयु, वेदनीय - इन चार कर्म की स्थिति विषम होती है, हीनाधिक होती है; वे जिनेन्द्र समुद्घात करके कर्म की स्थिति बराबर करके शील के स्वामीपने को प्राप्त होते हैं ।

  सदासुखदासजी