
ओल्लं संतं वत्थं विरल्लिदं जध लहु विणिव्वादि ।
संवेढियं तु ण तधा तधेव कम्मं पि णादव्वं॥2120॥
गीला कपड़ा फैला दें तो शीघ्र सूख जाता जैसे ।
रहे इकट्ठा तो नहिं सूखे, कमाब की स्थिति वैसे॥2120॥
अन्वयार्थ : जैसे गीले वस्त्र को पसारकर सुखाने से वह शीघ्र ही सूख जाता है, तैसे समेटकर इकट्ठा किया गया गीला वस्त्र नहीं सूखता है, बहुत समय में क्रम से सूखता है; वैसे ही कर्म समुद्घात के अवसर में जीव के प्रदेशों के साथ फैलने से शीघ्र ही निर्जर जाता है और समुद्घात बिना क्रम से बहुत काल में निर्जरता है - ऐसा जानना योग्य है ।
सदासुखदासजी