
चदुहिं समएहिं दंड कवाड पदरजगपूरणाणि तदा ।
कमसो करेदि तह चेव णियत्ती चदुहिं समएहिं॥2122॥
चार समय में दण्ड कपाट प्रतर अरु लोकपूर्ण होते ।
चार समय में क्रमशः लोकपूर्ण से देह व्याप्त होते॥2122॥
अन्वयार्थ : जो खड्गासनावस्था में समुद्घात करते हैं, उनके एक समय में आत्मा के प्रदेश देह से नीचे या ऊपर दंडाकार द्वादश अंगुल प्रमाण मोटे घनरूप निकलकर और नीचे के वातवलय से लेकर ऊपर के वातवलय के अभ्यन्तरपर्यंत वातवलय की मोटाई से कुछ ऊन चौदह राजू लम्बे और बारह अंगुल मोटे, ऐसे एक समय में दण्डाकार होते हैं और जो बैठे/पद्मासन अवस्था में समुद्घात हो तो अपने देह से तिगुने मोटे और नीचे-ऊपर वातवलयरहित लोकप्रमाण दण्डाकार आत्मप्रदेश फैल जाते हैं और दूसरे समय में जो दण्डाकार आत्मप्रदेश थे । वह कपाट के आकार वातवलयों को छोडकर करतेहैं । पूर्व सन्मुख हो तो दक्षिण-उत्तर कपाट करते हैं और उत्तर सन्मुख हो तो पूर्व-पश्चिम कपाटरूप होते हैं । खड्गासनावस्था में द्वादश अंगुल मोटे कपाट रूप होते हैं और पद्मासनावस्था में हों तोे शरीर से तिगुने मोटे कपाटरूप होते हैं और तीसरे समय में आत्मा के प्रदेश वातवलय बिना समस्त लोक में प्रतररूप से व्याप्त होते हैं, वह प्रतरसमुद्घात है और चौथे समय में वातवलयसहित सम्पूर्ण लोक में तीन सौ तेतालीस राजूप्रमाण लोक में घनरूप आत्मा के प्रदेश व्याप्त होते हैं, वह लोकपूरण समुद्घात है । इसप्रकार चार समयों में दंड, कपाट, प्रतर और लोकपूरणरूप आत्मा के प्रदेशों को अनुक्रम से करते हैं और चार समय में अनुक्रम से समुद्घात से निवृत्ति करते हैं अर्थात् पाँचवें समय में प्रतररूप, छठवें समय में कपाटरूप, सातवें समय में दंडरूप और आठवें समय में मूलदेहप्रमाण हो जाते हैं । इस तरह समुद्घात करके कर्म की स्थिति को आयु की स्थितिसमान करते हैं ।
सदासुखदासजी