
काऊणाउसमाइं णामागोदाणि वेदणीयं च ।
सेलेसिमब्भुवेंतो जोगणिरोधं तदो कुणदि॥2123॥
नाम गोत्र अरु वेदनीय की स्थिति करते आयु प्रमाण ।
शिवपथ गामी योग सहित जिन योगों का निरोध करते॥2123॥
अन्वयार्थ : इसप्रकार समुद्घात के प्रभाव से नाम, गोत्र, वेदनीय कर्म की, आयुकर्म की अन्तर्मुहूर्त की स्थिति शेष रह गई थी, उसके समान करके और अठारह हजार शील के भेदों के स्वामीपने को प्राप्त होने के बाद मन, वचन, काय के निमित्त से आत्मप्रदेशों का हलन- चलन था, उसको रोकते हैं ।
सदासुखदासजी