
तध चेव सुहुममणवचिजोगं सुहमेण कायजोगेण ।
रंभित्तु जिणो चिट्ठदि सो सुहमे काइए जोगे॥2125॥
सूक्षम काय योग से करते सूक्ष्म वचन-मन योग निरोध ।
जिन सयोग केवली प्रभू तब थिर हो सूक्षम काय सुयोग॥2125॥
अन्वयार्थ : बादरयोग में रहकर बादर मन-वचन के योगों को सूक्ष्म करते हैं और सूक्ष्म मन-वचन योग में रहकर बादरकाययोग को सूक्ष्म करते हैं और सूक्ष्मकाययोग में रहकर मन- वचन-काय के सूक्ष्म योग थे, उनका अभाव करके सूक्ष्म काययोग में रहते हैं ।
सदासुखदासजी