पं-सदासुखदासजी
माणुसगदितज्जादि पज्जत्तादिंज्जसुभगजसकित्तिं ।
अण्णदरवेदणीयं तसबादरमुच्चगोदं च॥2128॥
नर गति-जाति पर्याप्ति आदेय सुभग यश कीर्ति प्रकृति ।
एक वेदनीय1 त्रय बादर अरु उच्च गोत्र नर-आयु प्रकृति॥2128॥
सदासुखदासजी