चरियसमसम्मि तो सो खवेदि वेदिज्जमाणपयडीओ ।
बारस तित्थवरजिणो एक्कारस सेससव्वण्हू॥2132॥
अन्त समय में तीर्थंकर जिन बारह प्रकृति नष्ट करें ।
वेद्यमान का, अन्य जिनेश्वर ग्यारह प्रकृति नष्ट करें॥2132॥
अन्वयार्थ : उसके बाद अयोगी गुणस्थान के अंतिम समय में तीर्थंकर जिन हो तो उदयरूप बारह प्रकृतियों का क्षय करते हैं और तीर्थंकर बिना शेष सर्वज्ञ ग्यारह प्रकृतियों का क्षय करते हैं ।

  सदासुखदासजी