
तं सो बंधणमुक्को उढ्ढं जीवो पओगदो जादि ।
जह एरंडयबीयं बंधणमुक्कं समुप्पपदि॥2134॥
जीव वेग से ऊपर जाता जब बन्धन से होता मुक्त ।
एरण्ड बीज ज्यों ऊपर जाता जब बन्धन से होता मुक्त॥2134॥
अन्वयार्थ : नामकर्म के क्षय से तैजस शरीर का बंध उन जिन के नाश हो जाता है और आयुकर्म का क्षय करके औदारिक शरीर का बंध नाश हो जाता है, उसके बाद वे भगवान बंधन से रहित प्रयोग से ऊर्ध्वगमन करते हैं । जैसे एरण्ड का बीज बंधनरहित ऊपर गमन करता है, वैसे ही कर्म से छूटने से जीव ऊर्ध्वगमन करते हैं ।
सदासुखदासजी