
झाणेण य तह अप्पा पउइदो जेण जादि सो उढ्ढं ।
वेगेण पूरिदो जह ठाइदुकामो वि य ण ठादि॥2136॥
यथा वेगयुत व्यक्ति ठहरना चाहे तो भी नहिं ठहरे ।
वैसे ही निज ध्यान वेग से आत्मा ऊपर ही जाये॥2136॥
अन्वयार्थ : जैसे पवन तथा जलादि के वेग से प्रेरित ठहरने की इच्छा होने पर भी ठहर नहीं सकता है; तैसे ही ध्यान के प्रयोग से आत्मा ऊर्ध्वगमन करता है ।
सदासुखदासजी