
जह वा अग्गिस्स सिहा सद्दावदो चेव होहि उढ्ढगदी ।
जीवस्स तह सभावो उढ्ढगमणलप्पवसियस्स॥2137॥
जैसे अग्नि की लपटों की है स्वभाव से ऊर्ध्वगति ।
कर्म रहित स्वाधीन आत्मा की स्वभाव से ऊर्ध्वगति॥2137॥
अन्वयार्थ : अथवा जैसे अग्नि की शिखा स्वभाव से ही ऊर्ध्वगमन करनेवाली होती है; वैसे ही कर्मरहित स्वाधीन आत्मा का भी स्वभाव से ही ऊर्ध्वगमन होता है ।
सदासुखदासजी