
तो सो अविग्गहाए गदीए समए अणन्तरे चेव ।
पावदि जयस्स सिहरं खित्तं कालेण य फुसंतो॥2138॥
तदनन्तर वह जीव अविग्रह गति से एक समय में ही ।
क्षेत्र स्पर्शन किये बिना ही लोक शिखर में शोभित हो॥2138॥
अन्वयार्थ : इसलिए वह कर्मरहित शुद्ध जीव सरल/सीधा गमन करके अनन्तर समय में काल से क्षेत्र को स्पर्श नहीं करता हुआ एक समय में ही लोक के शिखर/सिद्धक्षेत्र को प्राप्त होता है ।
सदासुखदासजी