
एवं इहहं पयहिय देहतिगं सिद्धखेत्तमुवगम्म ।
सव्व परिययायमुक्को सिज्झदि जीवो सभावत्थो॥2139॥
देह-त्रय को छोड़ मुक्त हो सिद्ध-क्षेत्र में राज रहे ।
सब प्रचार से रहित हुए वे निज स्वभाव में लीन रहें॥2139॥
अन्वयार्थ : इसप्रकार इस लोक में तैजस, कार्माण, औदारिक - इन तीन शरीरों को त्यागकर सिद्धक्षेत्र को प्राप्त होकर समस्त प्रचाररहित अपने स्वभाव में लीन सिद्ध होते हैं ।
सदासुखदासजी