ईसिप्पब्भाराए उवरिं अत्थदि सो जोयणम्मि सीदाए ।
ध्रुवमचलमजरठाणं लोगसिहरमस्सिदो सिद्धो॥2140॥
ईषत् प्राग्भार पृथ्वी के इक योजन पर लोक शिखर ।
अचलअजरधु्रव लोक शिखर पर जाकर शोभित होते सिद्ध॥2140॥
अन्वयार्थ : ईषत्प्राग्भार नामक अष्टम पृथ्वी के ऊपर किंचित् ऊन एक योजन वातवलय का क्षेत्र है, उसके अंत/शिखर पर सिद्ध भगवान विराजमान हैं । कैसा है लोक का शिखर? ध्रुव/शाश्वत है, अचल है, जीर्ण नहीं होता, इसलिए अजर है ।

  सदासुखदासजी